शायद…

आँखों मैं तूफ़ान सा था,
चेहरे पर मुस्कान तोह नहीं थी,
माथे पे शायद सवाल था…

मैं कोशिश करता था पढ़ने की,
पन्ना पर वह पलट देती,
हलकी सी मुस्कराहट शायद,
तब वह पेहेन लेती …

मुस्कुराया मैं एक दिन,
शायद नहीं मुस्कुराना था,
परदा कर लिया उसने पल मैं,
सारा शायद आँखों मैं अफ़साना था…

अब मैं उससे गुफ़्तगू,
ज़रा सी, आँखों से करता हूँ,
कुछ अपनी आँखों से बतलाता हूँ ,
कुछ कविता मैं लिख़ देता हूँ…!

-Virendra Wanage (PGPM 2023)

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